निमाड़ के प्रसिद्ध संत श्री सिंगाजी महाराज का सिंगाजी धाम छलपी समाधि स्थल पर 459 व समाधि दिवस रविवार को मनाया गया।
मुंदी.। निमाड़ के प्रसिद्ध संत श्री सिंगाजी महाराज का सिंगाजी धाम छलपी समाधि स्थल पर 459 व समाधि दिवस रविवार को मनाया गया।
1 दिन पूर्व से ही सिंगाजी मे भक्तों का आना शुरू हो गया था एवं रात में ही करीब 50 हजार व्यक्ति सिंगाजी धाम मंदिर परिसर के आसपास पहुंच गए थे मंदिर के महंत रतन महाराज ने बताया कि सद्गुरु सिंगा महाराज का सावन सुदी नवमी के दिन समाधि ली थी जिसका कारण था कि सिंगाजी महाराज के गुरु मन रंग स्वामी ने उनसे नाराज होकर कहा था कि अब तुम मुझे अपना मुंह मत दिखाना। तब सिंगाजी महाराज अपने गुरु जी की नाराजगी को बर्दाश्त नहीं कर पाए और उन्होंने अपनी देह त्याग दी मृत्यु के बाद है मन रंग स्वामी सिंगाजी महाराज के चेहरा देख पाए उस के बाद सिंगाजी धाम छलपी में ही संत सिंगाजी महाराज के समाधि स्थल का निर्माण किया गया।
सिंगाजी महाराज के वैसे तो चमत्कारी संत कहा जाता है और उनके चमत्कार के अनेक किस्से आज भी लोगों की जुबान पर यदाकदा आ ही जाते हैं।
संत सिंगाजी महाराज के भक्त तो पूरे देश में फैले हुए हैं और इस बात का उदाहरण समाधि स्थल पर रविवार को देखा गया जहां करीब एक लाख श्रद्धालुओं ने आसपास के क्षेत्र सहित प्रदेश एवं देश के अनेक गुणों से भी श्रद्धालु पवित्र निशान लेकर पैदल ही सिंगा महाराज के समाधि स्थल पहुंचे और सिंगा महाराज को निशान समर्पित किया और आशीर्वाद लिया।
मां नर्मदा के पवित्र आंचल में सिमटा सिंगाजी टापू प्राकृतिक सुंदरता तो समेटे हुए हैं परंतु यह निर्माण के लोगों के श्रद्धा का प्रमुख केंद्र भी बन गया है। नवमी के 1 दिन पूर्व ही बड़ी सुबह से लोगों ने मां नर्मदा में डुबकी लगाकर संत सिंगाजी महाराज समाधि स्थल पर पूजा हवन किया साथ ही यहां सुबह से ही विशेष आरती और पूजा पाठ एवं संत सिंगाजी महाराज के भजन मंडली द्वारा सिंगाजी महाराज की महिमा को संगीतमय आयोजन के जरिए बताया भी जा रहा था।
क्योंकि सिंगाजी धाम वह स्थान है जो इंदिरा सागर बांध के बैक वाटर में आकर डूब क्षेत्र में आ गया था उस टाइम पर तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने इस समाधि स्थल पर आए थे जहां लोगों ने उन्हें समाधि स्थल को संरक्षित करने का कहा था परंतु दिग्विजय सिंह ने लोगों की बातों का ध्यान नहीं दिया था और जब वह सिंगा महाराज के दर्शन कर यहां से अपने उड़नखटोले से जाने को तैयार हुए तब हेलीकॉप्टर ने उड़ान नहीं भर पाया काफी प्रयास एवं इंजीनियरों की कोशिश भी बेकार साबित हुई तब लोगों ने दिग्विजय सिंह को सिंगाजी महाराज समाधि स्थल पर मत्था टेकने और सिंगाजी महाराज से आशीर्वाद लेने का कहा तब दिग्विजय सिंह ने सिंगाजी महाराज समाधि स्थल पर कहा कि आप सिंगाजी महाराज के समाधि स्थल को संरक्षित एवं विकसित कर सुरक्षित किया जाएगा तब जाकर सिंह का हेलीकॉप्टर और पाया उसके बाद यहां पर अनेक विकास के कार्य हुए जिसमें चारों ओर से घिरे इस समाधि स्थल के पहुंचने के लिए करीब 2 किलोमीटर का एक ब्रिज के निर्माण किया गया जिसके चारों और मां नर्मदा का पानी समाया हुआ है और दूर से देखने में यह किसी टापू से कम नजर नहीं आता।
रविवार को शाम को 4:00 बजे सिंगाजी महाराज की महा आरती की गई एवं शाम को 164 दीपों से सजी दीपमाला भी प्रज्जवलित की गई जो इस अवसर पर सिंगाजी धाम छलपी मंदिर परिसर में चार चांद लगा रही थी।
रविवार के दिन बीड मुंदी सिंगाजी आदि अनेक जगह सिंगाजी भक्तों ने भोजन एवं भंडारा प्रसादी की व्यवस्था की थी और हर सिंगाजी महाराज के भक्तों को प्रसादी भी बांटी गई जहां लोगों ने कहीं शुद्ध घी का हलवा तो कहीं पोहा कहीं चाय आदि की व्यवस्था की थी।
श्रद्धालुओं में कहीं नेता तो कहीं भक्ति में डूबी महिला पुरुष बच्चे बुजुर्ग भी ढोल की थाप पर निशान लेकर नाचते-गाते झुंड में दिख रहे थे।
1 दिन पूर्व से ही सिंगाजी मे भक्तों का आना शुरू हो गया था एवं रात में ही करीब 50 हजार व्यक्ति सिंगाजी धाम मंदिर परिसर के आसपास पहुंच गए थे मंदिर के महंत रतन महाराज ने बताया कि सद्गुरु सिंगा महाराज का सावन सुदी नवमी के दिन समाधि ली थी जिसका कारण था कि सिंगाजी महाराज के गुरु मन रंग स्वामी ने उनसे नाराज होकर कहा था कि अब तुम मुझे अपना मुंह मत दिखाना। तब सिंगाजी महाराज अपने गुरु जी की नाराजगी को बर्दाश्त नहीं कर पाए और उन्होंने अपनी देह त्याग दी मृत्यु के बाद है मन रंग स्वामी सिंगाजी महाराज के चेहरा देख पाए उस के बाद सिंगाजी धाम छलपी में ही संत सिंगाजी महाराज के समाधि स्थल का निर्माण किया गया।
सिंगाजी महाराज के वैसे तो चमत्कारी संत कहा जाता है और उनके चमत्कार के अनेक किस्से आज भी लोगों की जुबान पर यदाकदा आ ही जाते हैं।
संत सिंगाजी महाराज के भक्त तो पूरे देश में फैले हुए हैं और इस बात का उदाहरण समाधि स्थल पर रविवार को देखा गया जहां करीब एक लाख श्रद्धालुओं ने आसपास के क्षेत्र सहित प्रदेश एवं देश के अनेक गुणों से भी श्रद्धालु पवित्र निशान लेकर पैदल ही सिंगा महाराज के समाधि स्थल पहुंचे और सिंगा महाराज को निशान समर्पित किया और आशीर्वाद लिया।
मां नर्मदा के पवित्र आंचल में सिमटा सिंगाजी टापू प्राकृतिक सुंदरता तो समेटे हुए हैं परंतु यह निर्माण के लोगों के श्रद्धा का प्रमुख केंद्र भी बन गया है। नवमी के 1 दिन पूर्व ही बड़ी सुबह से लोगों ने मां नर्मदा में डुबकी लगाकर संत सिंगाजी महाराज समाधि स्थल पर पूजा हवन किया साथ ही यहां सुबह से ही विशेष आरती और पूजा पाठ एवं संत सिंगाजी महाराज के भजन मंडली द्वारा सिंगाजी महाराज की महिमा को संगीतमय आयोजन के जरिए बताया भी जा रहा था।
क्योंकि सिंगाजी धाम वह स्थान है जो इंदिरा सागर बांध के बैक वाटर में आकर डूब क्षेत्र में आ गया था उस टाइम पर तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने इस समाधि स्थल पर आए थे जहां लोगों ने उन्हें समाधि स्थल को संरक्षित करने का कहा था परंतु दिग्विजय सिंह ने लोगों की बातों का ध्यान नहीं दिया था और जब वह सिंगा महाराज के दर्शन कर यहां से अपने उड़नखटोले से जाने को तैयार हुए तब हेलीकॉप्टर ने उड़ान नहीं भर पाया काफी प्रयास एवं इंजीनियरों की कोशिश भी बेकार साबित हुई तब लोगों ने दिग्विजय सिंह को सिंगाजी महाराज समाधि स्थल पर मत्था टेकने और सिंगाजी महाराज से आशीर्वाद लेने का कहा तब दिग्विजय सिंह ने सिंगाजी महाराज समाधि स्थल पर कहा कि आप सिंगाजी महाराज के समाधि स्थल को संरक्षित एवं विकसित कर सुरक्षित किया जाएगा तब जाकर सिंह का हेलीकॉप्टर और पाया उसके बाद यहां पर अनेक विकास के कार्य हुए जिसमें चारों ओर से घिरे इस समाधि स्थल के पहुंचने के लिए करीब 2 किलोमीटर का एक ब्रिज के निर्माण किया गया जिसके चारों और मां नर्मदा का पानी समाया हुआ है और दूर से देखने में यह किसी टापू से कम नजर नहीं आता।
रविवार को शाम को 4:00 बजे सिंगाजी महाराज की महा आरती की गई एवं शाम को 164 दीपों से सजी दीपमाला भी प्रज्जवलित की गई जो इस अवसर पर सिंगाजी धाम छलपी मंदिर परिसर में चार चांद लगा रही थी।
रविवार के दिन बीड मुंदी सिंगाजी आदि अनेक जगह सिंगाजी भक्तों ने भोजन एवं भंडारा प्रसादी की व्यवस्था की थी और हर सिंगाजी महाराज के भक्तों को प्रसादी भी बांटी गई जहां लोगों ने कहीं शुद्ध घी का हलवा तो कहीं पोहा कहीं चाय आदि की व्यवस्था की थी।
श्रद्धालुओं में कहीं नेता तो कहीं भक्ति में डूबी महिला पुरुष बच्चे बुजुर्ग भी ढोल की थाप पर निशान लेकर नाचते-गाते झुंड में दिख रहे थे।
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